हिन्दी का तेजी से होता अंग्रेजीकरण

कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिन्हें देखकर भी हम अनदेखा कर देते है। ऐसी समस्याओं में एक प्रमुख समस्या जो तेजी से बढ़ रही है, वह हिन्दी का तेजी से होता अंग्रेजीकरण है। अंग्रेजों ने जिन देशों को अपना उपनिवेश बनाया था वे सभी देश आजादी के बाद भी अंग्रेजीयत के प्रभाव से मुक्त नही हो पाए हैं। हिन्दुस्तान या भारत तो अंग्रेजी के प्रभाव से इन्डिया हो ही चुका है,लेकिन अंग्रेजी के प्रभाव से अब हिन्दी भी हिन्गलिश सी होने लगी है। यह एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसके दुष्परिणाम दूरगामी होंगे। त्वरित रूप में इसके दुष्प्रभाव अभी पता नही चलेंगे। हर देश की पहचान उसकी राष्ट्रभाषा, उसकी सभ्यता व संस्कृति से होती है। हिन्दी भाषा तेजी से अंग्रेजी के प्रभाव से संक्रमित हो रही है। इसके बावजुद हिन्दी भाषा के बचाव के लिए होता कोई प्रयास होते नही दिख रहे। कुछ समय पूर्व मुझे एक कार्यक्रम में शिरकत करने का सौभाग्य मिला। हिन्दी भाषा साहित्य के विद्यार्थी उसमें अपनी मौलिक रचनाओं के साथ आमंत्रित थे। कार्यक्रम का आयोजन तथा संचालन करने वाले सभी सदस्य हिन्दी भाषा से जुड़े विद्वज्ञ जन थे। कई प्रतियोगियों ने वहाँ अपनी मौलिक रचनाएँ प्रस्तुत की, परन्तु एक प्रतियोगी ने अपनी रचना हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओँ को मिलाकर प्रस्तुत की थी। इस रचना पर काफी तालियाँ बजी तथा विद्वज्ञ जनों ने इस रचना की प्रशंसा करते हुए कहा असाधारण लोग अलग तरह से कार्य करते है। उनके इस वक्तव्य से मुझे बड़ी मायूसी हाथ लगी। लगा कि आजादी के इतने वर्षों के पश्चात् भी हम कहाँ पहुँचे हैं, शुद्ध हिंदी में रची गई मौलिक रचनाओं की प्रशंसा करने के बजाय हमें अंग्रेजी की बैशाखी पर घिसटती हुई अपाहिज रचना अधिक मुल्यवान लगती है। अंग्रेजों ने हमें शारीरिक रूप से गुलाम बनाया था मगर तब भी हमारी आत्मा स्वतंत्र थी। परन्तु अब अंग्रेजीयत के प्रभाव से हमारी आत्मा भी गुलाम हो गई है और जिस देश की आत्मा गुलाम हो जाती है उस देश की आजादी का कोई मोल नही रह जाता है। इसलिए हमें जागरूक होने की आवश्यकता है और अपनी सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान व राष्ट्रभाषा को वह सम्मान देना होगा जिसके वे अधिकारी हैं। इण्डिया को भारत तथा हिंगलिश को हिन्दी बनाना होगा।

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