स्पेशल ट्रेन से धनबाद पहुंच हुई भावुक, कहा- पति ने साथ छाेड़ा खाने के नहीं थे पैसे, घर का सामान बेचकर बच्चाें की भूख मिटाई

जीवन में पहले से परेशानियां कम नहीं थी। लॉकडाउन के बाद परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ा। रोजगार चला गया। पति साथ छोड़ गया। बच्चे भूख से तड़पने लगे। घर का सामान बेच कर भोजन जुटाई और बच्चों का पेट भरा। श्रमिक ट्रेन पर सवार होकर तमिलनाडु से धनबाद पहुंची सरायकेला की लता इतना कह कर रो पड़ी। लता गुरुवार को तमिलनाड़ और कर्नाटक से लौटे 3500 श्रमिकों में शामिल थी। वह कहती हैं कि लॉकडाउन के बाद जिंदगी तबाह सी हो गई। जहां रहते थे (तमिलनाडु) वहां रहना मुश्किल हो गया। गांव - घर लौटना चाहे, तो अलग परेशानी हुई। श्रमिक ट्रेन चली तो किसी तरह झारखंड पहुंचे हैं। तमिलनाडू में कई साल रहकर जो कुछ कमाई थी, सब वही समाप्त हो गई। खाली हाथ तमिलनाडु गए थे और खाली हाथ ही वापस लौटे हैं। अब भविष्य अंधेरे में दिख रहा है। क्या करेंगे? कैसे बच्चों का पालन करेंगे? क्या खाएंगे? ऐसे कई सवाल झकझोर रहे हैं।

दूर से ही फेंक करदिया खाना व पानी

कर्नाटका के बैंगलुरु से धनबाद पहुंची ट्रेन 6 घंटे के विलंब से धनबाद पहुंची। ट्रेन में सवार श्रमिकाें ने बताया कि रास्तेभर अलग-अलग स्टेशनाें में खाने की पूरी व्यवस्था की गई थी। लेकिन, आंध्र प्रदेश के कुछ स्टेशनाें में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। इन स्टेशनाें पर दूर से ही पानी की बाेतल और खाने का पैकेट फेंका गया। ऐसे में कई लाेगाें तक खाने का पैकेट और पीने का पानी नहीं पहुंचा।

बर्तन तक नहीं बची सब बिक गए : लता

सरायकेला के बिजई गांव की रहने वाली लता अपने दाे मासूम बच्चाें के साथ
लता धनबाद पहुंची थी। वह कहती हैं कि उनका पति शराबी है। लाॅकडाउन के बाद वह उन्हें छाेड़ कर भाग गया। चेन्नई में घर-घर जाकर लाेगाें के यहां काम करती थी। कोरोना संक्रमण फैला तो लोगों ने घर बुलाना बंद कर दिया। कुछ ही दिनों में भोजन की समस्या शुरू हो गई। स्थिति ऐसी आगई कि घर के सामान बेचने पड़े। 10 साल कमा कर एक-एक रुपए जमा कर सामान खरीदे थे, भूख मिटाने के लिए उन्हें बेच दिया। घर के बर्तन तक नहीं बचे। एक स्थानीय व्यक्ति ने उन्हें स्पेशल ट्रेन के बारे मेंजानकारी दी।



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बच्चों के साथ सरायकेला जाती लता।


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