कोरोना से मौत पर अपनों ने भी छोड़ा साथ... मोक्ष धाम में संक्रमित शवों को मुक्ति दिला रहे अभय, 2 माह से अपने घर तक नहीं गए
संतोष चौधरी, कोरोना ने समाज के साथ-साथ खून के रिश्ते में भी इस कदर दूरी बना दी है कि लोग संक्रमितों का सांस चलते रहने से लेकर इसके टूट जाने के बाद भी साथ नहीं दे रहे। इस संक्रमण ने लोगों की सोच, सामाजिक दायित्व और अपनत्व तक को तार-तार कर दिया है। यही कारण है कि जब रिम्स में लगातार संक्रमण से मौतें होने लगीं तो कई अपने भी साथ छोड़ कर निकल गए। कुछ संक्रमितों के शव के साथ उनके परिजन हरमू के विद्युत शवदाह गृह में आते भी हैं तो दूर से ही खड़े होकर बस उन्हें देखते हैं।
ऐसे में पिछले 2 माह से हरमू मोक्ष धाम में संक्रमित शव को मोक्ष दिलाने में जुटे अभय मिंज उर्फ कल्लू का त्याग वाकई में सलाम करने लायक है। करीब 34 संक्रमित शवों का दाह करने वाले अभय ने 2 माह से अपना घर त्याग दिया है। महज 200 कदम की दूरी पर घर होने के बावजूद वह अपने 2 वर्ष के बच्चे की शरारत को मोबाइल पर ही देखते हैं। क्योंकि संक्रमित शव को जलाने के बाद वह घर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। कहते हैं फिलहाल इसी त्याग के साथ उन्हेें जीना
पढ़ें... सामाजिक दायित्व निभा रहे अभय की कहानी उन्हीं की जुबानीहै।
मैं 5 वर्ष की उम्र से हरमू मुक्तिधाम में लाश जला रहा हूं। क्योंकि मेरी दादी यहां काम करती थी। बाबा से लेकर चाचा लाश जलाने का ही काम करते थे। करीब 18 वर्ष लाश जलाते हो गए लेकिन कभी डरा नहीं। 2 माह पहले जब विद्युत शवदाह गृह में रात के वक्त कोरोना संक्रमित की डेड बॉडी आई तो उसे जलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
मारवाड़ी सहायक समिति के अध्यक्ष प्रदीप राजगढ़िया ने काफी समझाया। समाज की जिम्मेदारी का वास्ता दिया तब जाकर मैं लाश जलाने के लिए तैयार हुआ, लेकिन जैसे ही डेड बॉडी को भट्ठा के पास ले गया अंदर तक हिल गया। पीपीई किट पहने होने के बावजूद मुझे लग रहा था कि कहीं मुझे भी कोरोना हो जाएगा तब क्या करेंगे? किसी तरह लाश जलाया।
खुद के सवाल से मिली हिम्मत... मैं नहीं जलाऊंगा तो कौन आएगा जलाने
पहला संक्रमित का शव जलाने के दूसरे ही दिन फिर एक इसी तरह की डेड बॉडी आई तो उसे जलाने में मेरा वही हश्र हुआ। दूसरा व तीसरा शव जलाने के बाद 10 दिनों तक तो ढंग से न सो पाया और न खा पाया। सोचने लगा कि अगर इन डेड बॉडी को मैं नहीं जलाऊंगा तो कौन आएगा जलाने? यह सवाल ही मेरे अंदर हिम्मत पैदा करता है।
वर्षों से बंद था शवदाह गृह...मारवाड़ी सहायक समिति के प्रयास से मिली सफलता
हरमू स्थित विद्युत शवदाह गृह 12 वर्षों से मृतप्रायः था। जैसे ही कोरोना संक्रमित की मौत के बाद शव दफनाने को लेकर हरमू कब्रिस्तान के बाहर हंगामा हुआ प्रशासन की नींद खुल गई। ऐसे में मारवाड़ी सहायक समिति ने इसे दुरुस्त कराने का बीड़ा उठाया। कबाड़ पड़े मशीन को एलपीजी से संचालित करा कर शव जलाने की व्यवस्था की गई।
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