नयका कानून के फेर में


व्यंग 
घर से निकल कर मैं अपने आॅफिस जा रहा था कि अचानक सामने से एक व्यक्ति मेरे मोटर-साईकल से टकराया। मैं मोटर-साईकल से गिरते-गिरते बचा। गनिमत थी कि गाड़ी की गति कम थी। जो व्यक्ति गाड़ी से टकराया था वह लंबे बाल, बढ़ी दाढ़ी फटे कपड़े पहने था। देखने से कुछ-कुछ पागल सा लग रहा था। मुझे देखकर वह बोला-भैया मुझे बचा लो यह कह वो मेरे पीछे छुप गया। मैंने सामने देखा कुछ  उत्पाती बच्चे उसे पागल-पागल कह कर चिढ़ा रहे थे। मैंने उनको फटकार लगाई तो वो बच्चे वहाँ से भाग गए। मैंने उस व्यक्ति को देखा उसने भी मुझे देखा, अरे क्या तुम खेलावन हो ना ? उसने मुझे देखकर बोला- भैया आप! यह कह वह मुझसे लिपट कर फूट-फूट कर बच्चों की तरह रोने लगा। किसी तरह मैंने उसे चुप कराया और कहा- चलो पहले तेरा हुलिया बदलते हैं। उसे बढ़िया से नहला-धूला कर नया कपड़ा पहनाया। फिर होटल में जाकर खाना खिलाया। तब उसे लेकर अपने घर आया। 
अब आपको बताता हूँ कि यह खेलावन कौन है ? यह मेरे अपने गाँव का सहपाठी है। हम लोगों का बचपन व जवानी साथ-साथ बीता था। नौकरी लगने के कारण मुझे शहर आना पड़ा। गाँव से लगभग नाता टूट सा गया। साल में कभी-कभार आना-जाना होता था। 
अब मुझे खेलावन के साथ घटी घटना को जानना जरूरी था। तब मैंने उससे पूछा- खेलावन भाई इ दुर्दशा तहर साथ कैसे हो गया ? तब उसने बताना शुरू किया कि भाई अभी कुछ महीना पहिले शहर आये थे कि हम भी नौकरी करेंगे। जो नौकरी लगाता है, उसका पता लगाकर उसके पास पहुँचे। मेरे पास तो टेकनीकल जानकारी था नहीं। तो नौकरी लगाने वाले ने मुझे एक क्लब में बतौर सिक्यूरीटी गार्ड रखवा दिया। बस यहीं से मेरा बुरा दिन शुरू हो गया। मैंने पूछा-वो कैसे ? खेलावन ने बताना शुरू किया कि- उस क्लब में एक छोटी बच्ची थी। देखने में बड़ी सुन्दर थी।एक दिन  मैंने उसे गोद में उठा लिया, गाल को पकड़ कर पूछा- क्या नाम है बेटी ? इतने में एक महिला मुझे देखते जोर-जोर से चिल्लाने लगी- ये बल्डी फूल! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बच्ची के साथ गलत व्यवहार करने की। मैं उसकी चिल्लाहट से सहम गया। उसके आवाज से मुहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। तभी किसी ने चिल्लाया- मारो और सभी मुझ पर टूट पड़े। मैं समझ नहीं पाया कि मेरा अपराध क्या है ? उन लोगों के व्यवहार से ऐसा लग रहा था कि सिविल सोसाईटी में कोई जंगली घूस गया है ? धीरे-धीरे भीड़ इकट्टा होनी शुरू हो गई। देखते-देखते यह अफवाह फैल गयी कि गार्ड ने बच्ची के साथ रेप करने की कोशिश की है। किसी ने पुलिस को खबर कर दी। पुलिस ने मुझे उठा कर हाजत में बन्द कर दिया। भइया अभी मेरा मुसीबत खत्म नही हुआ था। महिला सिपाही ने बताया कि तुमसे पूछताछ होगी। जो भी हुआ सच-सच बता देना। थोड़ी देर में महिला दारोगा आई, हाजत से निकाल कर दारोगा के चेम्बर में मुझे बिठा दिया गया। उसने मुझसे पूछताछ करनी शुरू की। मैंने सर झुकाकर उसकी बातों का जवाब देना शुरू किया। मैंने शुरू से अन्त तक अपनी बातें रख दी। दारोगा को मुझ पर विश्वास नहीं हो रहा था, वह बोली- सर उठा कर मेरी तरफ देखो और मेरे प्रश्नों का जवाब दो। मैंने जैसे ही अपना सर उठाया, मेरा एक आँख फड़कना शुरू कर दिया। यह मेरा दुर्भाग्य है कि जब मैं मुसीबत में होता हूँ, तो मेरा एक आँख अपने आप बन्द होना शुरू हो जाता है। यह देख दारोगा चिल्लाई देखो इस बदमाश को हमको आँख मार रहा है। मैं कुछ बोलता इससे पहले मेरी थाने में जोरदार धुनाई हो गई। मुझे कोर्ट में पेश किया गया, वहाँ भी मेरी मुसीबतें कम होने वाली नहीं थी। मुझ पर जो केस बनाया गया था, वह था बच्ची के साथ ..... रेप की कोशिश, साथ ही साथ दारोगा को आँख मारना भी शामिल था। मुझे यह बताया गया कि नया कानून बना है, वही तुम पर लागू किया गया है। मेरे तरफ से कोई वकील नहीं होने के कारण कोर्ट की तरफ से वकील रखा गया, जो मेरी तरफ से पैरवी कर सके। गनीमत यह रहा कि जो वकील मुझे मिला था वो अच्छा था। हर तारीख पर मेरी पेशी होती। आखिरकार मेरा वकील कोर्ट को समझाने में सफल रहा कि बच्ची के साथ मेरा क्लाइन्ट कोई गलत व्यवहार नहीं कर रहा था। दूसरा यह था कि मेरे क्लाइन्ट को आँख की बिमारी होने के कारण आँख अपने-आप दबने लगता है। जो देखने पर लगता है कि वह आँख मार रहा है। जबकि ऐसी बात नहीं है। कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया। 
मैंने खेलावन से पूछा- यह बताओ कि जो तुम हमारी मोटर-साईकल से टकराये वो माजरा क्या है ? खेलावन ने बताया कि इतने दिन जेल में रहने के कारण मेरे बाल, दाढ़ी बढ़ गए थे। कोर्ट से छूटने के बाद मैं अपने गाँव के लिए बस पकड़ने जा रहा था, तभी किसी बच्चे ने मुझे देखकर पागल-पागल चिल्लाना शुरू कर दिया। देखते-देखते कई बच्चों ने इकट्ठा होकर मुझ पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिए। मैं उनसे बचने के लिए भाग रहा था। यह तो ऊपर वाले की मेहरबानी थी कि आप हमको मिल गए। उसके बाद खेलावन ने जो मुझसे प्रश्न पूछा उसका जवाब मेरे पास नहीं था, शायद आपके पास हो। खेलावन का कहना था- भईया जिस क्लब में मेरी नौकरी लगी थी, वहाँ रात होते लड़के-लड़कियों की जमघट लगने लगती थी, उनका पहनावा देखकर हमको शर्म आता था। एक-दूसरे के साथ लिपट कर चलते थे। एक-दूसरे को किस करते थे। एक-दूसरे को कहाँ-कहाँ छूते थे ये मैं शर्म से कह भी नहीं सकता। 
भईया ये बताओ, क्या उनके लिए कोई कानून नहीं है ? हमारा क्या कसूर था भईया ? मैंने तो एक प्यारी बच्ची को प्यार से गाल छूआ था और गोद में उठाया था। वो तो मेरी बच्ची जैसी ही थी न, मेरे पास खेलावन के प्रश्नों का कोई जवाब नहीं था। बस इतना ही बोल पाया- खेलावन यह सिविल सोसाईटी है, इन पर कानून का डंडा नहीं चलता है। कानून का डन्डा हम और तुम जैसे गरीबों पर चलता है। 
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