लोहरदगा में करमा डाल का किया गया विसर्जन, मांदर की थाप पर थिरके लोग

जिले में करमा पर्व इस वर्ष कोविड 19 के कारण सादगीपूर्ण रहा। समाज के लोगों ने परंपरा को आगे बढ़ाया। जिसमें सीमित लोगों के बीच पूजा अर्चना हुई। शनिवार देर रात तक विभिन्न गांवों में सरना पद्धति से पूजा उपासना के बाद रविवार को पारंपरिक रिति रिवाज के अनुसार करमा राजा की डाल को उखाड़कर झूमते, नाचते व गाते नदियों में विसर्जित किया गया। यहां करमा डाल विसर्जित करने में गांव के बच्चे बच्चियां, युवा, बुजुर्ग व महिलाएं सोशल डिस्टेंस बनाते हुए शामिल हुईं। बताया गया कि भाई बहनों का इस पर्व से अटूट संबंध होता है। करमा डाल गाड़ने से लेकर विसर्जन करने तक करमा डाल का विशेष रूप से सेवा किया जाता है और मांदर, घंटा की थाप पर झूमते गाते हुए जल परवाह में विसर्जित किया जाता है। जिले के विभिन्न प्रखंडों के साथ शहर के विभिन्न टोलों मुहल्लों में भी सरना समाज के लोगों ने पूरे विधि विधान से करम राज की देर रात तक पूजा अर्चना की। भंडरा प्रखंड के मसमानों गांव में हरि पाहन, चामा पाहन, चंपा पाहन सहित अन्य गांव के लोगों द्वारा पारंपरिक रिति रिवाजों को मनाया गया।
इधर आदिवासी कॉलेज छात्रावास संख्या 01+03 बीएस कॉलेज में करमा डाली काट कर गाजा बाजा के साथ छात्रावास में लाकर सीमित लोगों के बीच दूरी बनाते हुए करमा डाली गड़ा गया था। लोगों ने भक्ति भाव से पूजा-अर्चना की। कार्यक्रम में पहन अमित उरांव, कुरा उरांव, नीतेश उरांव के नेतृत्व में तथा कहानीकार बिरी भगत के साथ पूजा अर्चना की गई। इस बीच केन्द्रीय सरना समिति के संरक्षक मनी उरांव, अध्यक्ष रघु उरांव, सुखदेव उरांव, वकील भगत, चोंहस उरांव, शंकर भगत, बिफाई उरांव,बालकिशन उरांव, कलिंदर उरांव, रंजन उरांव, अमित उरांव के द्वारा सराहनीय कार्य किया। करमा पूजा समारोह में पहली बार ऐसा हुआ कि वैश्विक महामारी के कारण त्योहार थोड़ा फीका रहा। कोई कार्यक्रम नहीं हुए।



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