करमा में पहली बार साफ नीले आसमान व मनोरम हरियाली के बीच प्रकृति का दिखा आदिम ठाठ

झारखंड में यदि इठलाती नदी है, तो गीत गाते झरने और उनके संगीत में झूमते जंगल। इन्हीं के साथ आदिवासी ज़िंदगी परवान चढ़ती है। प्रकृति और आदिवासी एक दूसरे के पूरक हैं। यही सबब है इनके नाम और पर्व-त्योहार भी बिना पक्षी, पशु और पेड़-पौधे, जल-जंगल के अधूरे हैं। सरहुल में सरई फूल, कदलेटा में भेलवा की टहनियां, जितिया में पीपल हरियारी में हरे पेड़-पौधे और करमा में करम डाली की पूजा की जाती है।

वरिष्ठ साहित्यकार और संस्कृति कर्मी महादेव टोप्पो बताते हैं कि कोरोना एक महामारी है। इसके बचाव के लिए लॉकडाउन लगाया गया। इसके कारण प्रदूषण नाम मात्र फैला। पेड़-पौधे जहां हरियाली में थिरकने लगे, तो साफ नीले गगन में पक्षी उड़ते हुए दिखे। ऐसे समय कृषि और प्रकृति से जुड़े करमा पर्व का आना खुशी से भर गया। झारखंड वासियों का हर्षोल्लास दुगुना हो गया है। फूल और डाइर की छटा ही अलग है। भाई-बहन के निश्छल प्यार के रूप में भी ख्यात यह पर्व भादो शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन अत्यंत सादगी लेकिन उसी प्राकृतिक ठाठ में अनुष्ठानपूर्वक मनाया गया। प्रकृति का आदिम सम्मान बरसों बाद पर्व में सहज दिखा।

बहनों ने अखड़ा 9 दिन सेवा कर जावा फूल उगाए

सरना समिति हरमू मुख्य अखड़ा, सहजानंद चौक में सादगी से करम पूजा हुई। नौ दिन पूर्व गांव की युवतियों द्वारा अखड़ा में पवित्र जावा फूल उगाया गया। दोपहर एक बजे गांव के कुंवारे युवक गांव के सीमान से करम गोसाई राजा को लेने निकल गए। जिसे शाम तक लाकर अखड़ा में स्थापित किया गया। रात्रि आठ बजे से हरमू मौजा के पाहन बाहा तिग्गा द्वारा पूजा शुरू की गई।

कोयल की कूक बुलबुल की हूक दे रही सुनाई : नितिश प्रियदर्शी

पर्यावरणविद नितिश प्रियदर्शी कहते हैं कि रांची और आसपास अब कोयल और बुलबुल की आवाज साफ सुनाई देने लगी है। कोरोना की तमाम त्रासदियों से जूझते रांची शहर के लोग सुबह-शाम की हवा में एक नई ताजगी महसूस करने लगे हैं। जिन लोगों के घरों के आसपास कुछ हरियाली बची है वहां अब परिंदों का कलरव ज्यादा साफ सुना जा रहा है। रांची के कुछ जगहों में मोर देखे जाने की भी सूचना है। ध्वनि प्रदूषण भी अभूतपूर्व ढंग से कम हो गया है।

जल, जंगल, जमीन के लिए प्रार्थना

कैथोलिक कलीसिया के आर्चबिशप हाउस में कर्मा पर्व पर आदिवासियों के लिए विशेष गुप्त मिस्सा हुई। इस अवसर पर आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो और सहायक बिशप थियोडोर मस्करेहंस उपस्थित थे। जल, जंगल और जमीन के लिए प्रार्थना की गई।

करमा-धरमा की बहनों ने सुनी कहानी

आदिवासी छात्रावास में करम पूजा सादगी से मनाया गया। पाहन निरंजन लकड़ा और सुआपन उरांव ने पूजा सम्पन कराया गया। कथा वाचक प्रोफेसर महामणि कुमारी ने करमा और धरमा के बारें कहानी सुनाई। इस पूजा छात्र प्रमुख प्रदीप उरांव सहित अन्य छात्रों का सहयोग रहा।



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भाईयों की उन्नति के लिए की करम डाल को पूजतीं बहनें।


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