करमा पर्व पर करमईत युवतियाें ने करम डाली सजा की पूजा-अर्चना

क्षेत्र में करम पर्व का उल्लास और उमंग अब सिर चढ़कर बोलने लगा है। कोरोना बीमारी ने सभी को थोड़ा उदास जरूर किया है परंतु प्रकृति से जुड़ा करम पर्व पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। झारखंड की माटी में रची बसी है करम संस्कृति। कृषि, पर्यावरण संरक्षण, आपसी भाईचारा, प्रकृति की अनुपम छटा नदी, झरने, पहाड़, जंगल, खेत, खलियान आदि को बड़े ही सुंदर तरीके से समाहित करता है करम पर्व। आमलाचातर गांव में भी करम पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर कुरमी, कुड़मी विकास मोर्चा के जिलाध्यक्ष अशोक महतो ने बताया कि करम पर्व 7 से 11 दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन गांव की सभी करमईत लड़कियां नदी में स्नान कर जावा डाली(डलिया )को सजा कर उसमें बालू भरकर मूंग, कुरथी, जौ, चना, मकई आदि के बीज बुनते हैं और लगातार भादो एकादशी तक इसकी समर्पित भाव से देखभाल एवं पूजा करते हैं। सुबह शाम इसकी करम गीतों से आराधना की जाती है।

इतने दिनों में जावा डाली में पौधे निकलकर हरे भरे हो जाते हैं इतने दिनों तक सभी करमईत अपने साफ-सफाई एवं निरामिष भोजन का पूरा ध्यान रखते हैं। एकादशी के दिन निर्जला उपवास रखकर रात में करम पेड़ की डाली एवं जावा की पूजा की जाती है और अपने अपने भाइयों के सुख समृद्धि की कामना करती है। इसलिए यह भाई-बहन के अटूट और निश्चल प्रेम का भी परव है। जो बहने नवविवाहिता होकर अपने ससुराल जाती हैं उनके लिए तो विशेष और मार्मिक भावना को समेटे हुए है यह करम पर्व।



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Karmite women worshiped the ritual on Karma festival


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