परंपरा:पर्यावरण और गांव की सुख-समृद्धि के लिए लोग सरना स्थल पर माघ और आषाढ़ महीने में करते हैं पूजा-अर्चना

पूर्वजों की स्मृतियों की जानकारी के लिए नियमित रूप से किया जा रहा इसका पालन

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