( 20 अक्तूबर बाल्मीकि जयंती विषेश )
*ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतीय भूमि पर एक
अद्भुत घटना के रूप में महर्षि वाल्मीकि का आविर्भाव हुआ
*महर्षि वाल्मीकि प्रारंभ में चोरी का कार्य करते थे
जिनका नाम रत्नाकर था
*किसी समय उन्हें नारदमुनि से भेट हुई
*उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह चोरी का कार्य क्यों करते हो?
*रत्नाकर ने उत्तर दिया हैं कि मैं इसीसे अपने परिवार
का पालन- पोषण करता हूं
डा. संजय कुमारआज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतीय भूमि पर एक अद्भुत घटना के रूप में महर्षि वाल्मीकि का आविर्भाव हुआ जिन्होंने आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण की रचना की। यह आदिकाव्य रामचरित के रूप में केवल प्रसिद्ध ही नहीं है अपितु यह आचरण, व्यवहार, जीवन- दर्शन ,कर्म ,त्याग ,प्रेम ,समर्पण और वैराग्य का ऐसा समुच्चय प्रस्तुत करता है जिसके कारण उसे भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। कथा प्रसिद्ध है कि व्याध के बाण से विधि हुए क्रौंच पक्षी के लिए विलाप करने वाली क्रोंची के करुण- क्रंदन को सुनकर महर्षि वाल्मीकि के मुख से अकस्मात ही प्रथम लौकिक छंद निकल पड़ा था- मा निषाद प्रतिष्ठास्त्वमगम:शाश्वती:समा:। यत क्रौंच मिथुनादेकमवधी: काममोहितम। अर्थात हे निषाद तुमने काम से मोहित इस क्रौंच पक्षी को मारा है अत: सदा- सदा के लिए प्रतिष्ठा को मत प्राप्त होओ। महर्षि वाल्मीकि के हृदय में स्थित शोक ही श्लोक रूप में परिणित होकर चतुर्विंशति साहस्री संहिता से युक्त बाल्मीकीय रामायण नाम से प्रसिद्ध हो गया। चतुर्विंशति साहस्री संहिता का अभिप्राय चौबीस हजार श्लोक से है7यह संख्या उतने ही हजार है जितने गायत्री मंत्र में अक्षर हैं। प्रत्येक हजार प्रथम गायत्री मंत्र के अक्षर से ही प्रारंभ होता है7 यद्यपि महर्षि वाल्मीकि के जीवन परिचय के विषय में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त नहीं होती है। कहीं उन्हें बल्मीक( दीमक )के कारण बाल्मीकि नाम से अभिहित किया गया है तो कहीं जन- सामान्य से जुड़ा एक व्यक्ति बताया गया है। एक किंबदंती के अनुसार यह भी कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि प्रारंभ में चोरी का कार्य करते थे जिनका नाम रत्नाकर था उस चोरी के कार्य से ही रत्नाकर अपने परिवार का भरण -पोषण करते थे।किसी समय उन्हें नारदमुनि से भेट हुई। उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह चोरी का कार्य क्यों करते हो? तब रत्नाकर ने उत्तर दिया हैं कि मैं इसीसे अपने परिवार का पालन- पोषण करता हूं। पुन: नारद ने कहा कि इससे पाप का भागी बनना पड़ेगा। इस पाप कर्म से अर्जित धन से जिस परिवार को पालते हो क्या वे भी इसके भागी बनेगें ? इस प्रश्न पर बाल्मीकि मौन हो जाते हैं और पूछने के लिए अपने परिवार के पास जाते हैं। परिवार के लोग सीधे-सीधे कहते हैं कि जो करेगा वह भरेगा। यानी पाप कर्म तो आप कर रहे हैं तो पाप का फल भी आप ही भोगेगें। परिवार जनों की यह बात सुनकर महर्षि वाल्मीकि को बहुत ही कष्ट हुआ और वे महर्षि नारद के शरण में आ गए। महर्षि नारद ने उन्हें राम-राम का जांप मंत्र दिया और इसी राम नाम से वे रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गये। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भी माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नवे पुत्र वरूण और उनकी पत्नी चर्षणी के कोख से हुआ है। इन्हें भृगु का छोटा भाई भी कहा जाता है। अश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन इनका जन्म हुआ था। इसलिए आश्विन पूर्णिमा को बाल्मिकीय जयंती के मनाया जाता है। इस दिन आकाश से अमृत की वर्षा होती है। जिसका भरतीय परम्परा में विशेष महत्व माना जाता है। इस तरह महर्षि बाल्मीकि कोई भी रहे हों यह अलग विषय है। लेकिन जो उनका अवदान है , उससे संपूर्ण भारत की प्रतिष्ठा विश्व के आकाश मंडल में व्याप्त हो गई है। इनकी कृति बाल्मीकीयरामायण को भारत का गौरव ग्रंथ कहा जाता है और महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि। बल्मिकीयरामायण के राम से ही प्रभावित होकर विश्व की अनेक भाषाओं में रामचरित लिखा गया।संपूर्ण विश्व वाड्मय का प्रेरणा स्रोत बाल्मीकि रामायण को माना जाता है। क्योंकि यहां जो समाज दर्शन का प्रतिबिंबन किया गया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। सभी साहित्य इसके त्याग, पारिवारिक संबंध ,सामाजिक संबंध, समर्पण और कर्तव्य से प्रभावित हैं। महर्षि बाल्मीकि ने ऐसे रामचरित का निर्माण किया है जिनका नाम सुनते ही प्रजा वत्सल राजा, आज्ञाकारी पुत्र ,स्नेही भ्राता, विपद ग्रस्त मित्रों के बंधु का चित्र हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। वहीं जनकनंदिनी सीता का नाम आते ही पतिव्रता स्त्री की ऐसी मूर्ति उपस्थित हो जाती है जो युगों युगों तक अपने आदर्शमय जीवन से सबके हृदय को रंजीत करती रहेगी। यदि पिता के स्नेह को देखा जाए तो वह पुत्र वियोग में अंतिम परिणति तक पहुंचता है। माता सदैव पुत्र का उपकार ही करती है और पुत्र का लाख अपकार करने वाली माँ को भी सदैव पूजनीय, वन्दनीय रूप में ही स्वीकार किया गया है। इस रामायण को मित्रता की कसौटी के रूप में भी देखा जाता है। इस तरह यह एक व्यावहारिक शास्त्र के रूप में सामने आता है।
मानव जीवन में भ्रातृत्वभाव का यहां अद्भुत स्वरूप दिखलाया गया है।यहां राम के बिना लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न या लक्ष्मण के बिना राम या भरत के बिना राम आदिका जीवन नगण्य है।यद्यपि बाली सुग्रीव को अत्यधिक प्रताडि़त किया हुआ रहता है फिर भी जब राम बाली का वध करते हैं तब सुग्रीव का भ्रातृत्व वियोग पाषाण हृदय को भी द्रवित करने वाला दृष्टिगोचर होता है।कुंभकरण की मृत्यु पर रावण का क्रंदन और रावण की मृत्यु पर विभीषण का रुदन भ्रातृ प्रेम के उत्कट निदर्शन के रूप में सामने आया हुआ है। इतना ही नहीं महर्षि वाल्मीकि ने तो पशु-पक्षियों के भ्रातृत्वभाव स्नेह को भी अपने रामायण में अंकित किया है। यहाँ संपाति और जटायु के मध्य भ्रातृत्व प्रेम को देखा जाए तो वह बहुत महत्वपूर्ण है। जब कपियों के मुख से जटायु के विनाश की बात संपाति सुनता है तो वह दु:खी होकर कहता है यह कौन है जो मेरे प्राणों से भी बढ़कर प्रिय मेरे भाई जटायु के वध की बात कर रहा है। यह बात सुनकर मेरा ह्रदय कंपित हो रहा है। संपाति जटायु के गुणों को व्यक्त करता हुआ कहता है कि जटायु मुझसे छोटा,गुणज्ञ और पराक्रमी है। उसके बिना मैं जीवन धारण नहीं कर सकूंगा।रावण जैसा घमंडी भी अपने भाइयों से अगाध स्नेह करता था। कुंभकरण के मारे जाने पर वह विलाप करता हुआ कहता है कि अब मुझे राज्य से कोई प्रयोजन नहीं है।सीता को लेकर भी मैं अब क्या करूंगा। कुंभकरण के बिना मैं एक क्षण थी जीवित नहीं रहना चाहता हूँ। इस तरह अद्भुत रूप में महर्षि बाल्मीकि अपने आदि काव्य बाल्मीकि रामायण में भ्रातृत्व स्नेह का वर्णन किये हैं। उनके भ्रातृत्व प्रेम के विषय में यह श्लोक अत्यंत प्रसिद्ध है जिसमे वे कहते हैं-देशे देशे कलास्त्राणी देशे देशे च बांधवा:। तं तु देशे न पश्यामि यत्र भ्राता सहोदरा। अर्थात स्थान- स्थान पर स्त्रियां मिल सकती है तथा बंदुजन भी प्राप्त हो सकते हैं परंतु मैं ऐसा कोई देश ,कोई स्थान नहीं देखता हूं जहां सहोदर भ्राता उन्हें इस जीवन में मिल सके। इस तरह से हम देखते हैं की यह बाल्मीकि रामायण आदि काव्य भारतीय संस्कृति, सभ्यता, जीवन मूल्य, दर्शन को प्रस्तुत करते हुए भ्रातृत्व स्नेह का अद्भुत रूप उपस्थित किया है। ऐसा भ्रातृत्व स्नेह संपूर्ण वांग्मय मैं दुर्लभ है।यह बाल्मीकीयरामायण मनुष्य के जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं का भी सहज समाधान प्रस्तुत करने के साथ यह राजधर्म, लोकधर्म, पर्यावरण,शिक्षा, स्वस्थ्य आदि से संबंधित सर्वत्र लोक कल्याण का विधान करता है। ऐसे आदि काव्य के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि की जयंती है पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।
(लेखक सहायक आचार्य-संस्कृत विभाग डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,सागर ,म प्र हैं)
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