विकास कुमार -
कोरोना महामारी के विकराल रूप से सभी प्रकार के वर्ग एवं समुदाय प्रभावित हुआ है। रोजगार के हालात कुछ ऐसे हैं कि काम मिल पाना भी मुश्किल हो रहा है। बहुत से लोगों की नौकरियां छूट रही है। मजदूर काम के लिए भटक रहा है क्योंकि उनको काम नहीं मिल रहा है। इस प्रकार के हालात में एक तरफ रोजगार की समस्या और दूसरी इस तरफ महंगाई की मार, इस दौर में आम आदमी की जिंदगी भटके हुए मुसाफिर की तरह हो गई। आज इस महामारी से सर्वाधिक परेशानी दिहाड़ी मजदूरों को हो रही है, क्योंकि एक ओर इस विकराल प्रकोप से लड़ रहा है, दूसरी ओर भूखमरी, रोजमर्रा की जिंदगी और दैनिक समस्याओं से भी जूझ रहा है। दिहाड़ी मजदूर असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं जिनका प्रतिदिन खाना और प्रतिदिन कमाना होता है। इस श्रेणी में- दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक ,मोची ,नाई ,घरों में काम करने वाले ,दुकानों में काम करने वाले लोग , ठेला लगाने वाले लोग और पल्लेदारी करने वाले आदि इसी श्रेणी में आते हैं । यह प्राय: अपने गांव या जिले से स्थानांतरण करके दूसरे शहर या प्रदेश में रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ऐसे कामगार वर्गों की आबादी 27 फ़ीसदी यानी 45 करोड़ है। इनमें से कुछ 200 कुछ 400 एवं कुछ ?600 प्रतिदिन कमाते हैं। इस पैसे से यह अपना और अपने संपूर्ण परिवार का खर्च चलाते हैं और उनका भरण पोषण करते हैं । किसी परिवार में कमाने वाला केवल एक ही व्यक्ति होता है और वही संपूर्ण परिवार की आवश्यकता की पूर्ति करता है। इस प्रकार की दिहाड़ी मजदूरों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश एवं बिहार की है। जो महाराष्ट्र ,दिल्ली एवं गुजरात में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं । महाराष्ट्र सरकार ने पहले ही लॉकडाउन की घोषणा कर दिया । जिसमें भारी संख्या में मजदूरों का पलायन गांव की ओर हुआ । पिछले वर्ष सरकार के अचानक लॉकडाउन कर देने की वजह से कुछ को पैदल , कुछ को बस में एवं कुछ को बीच में ही रुकना पड़ा। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यह समस्या केवल असंगठित क्षेत्र की है। संगठित क्षेत्र के भी सभी प्रकार के उद्योग- धंधे एवं व्यापार- वाणिज्य बंद हैं। एक देश का दूसरे देश से आयात निर्यात पूर्णतया है बंद है। ऐसे में बड़े-बड़े उद्योग एवं कंपनियां भी बंद पड़ी हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन के अनुसार ,भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या अधिक है इसलिए इनकी समस्याएं भी अधिक हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, लॉकडाउन के चलते विश्व में गरीबी रेखा का स्तर बढ़ा है । जिसमें सबसे अधिक भारत का (27त्न) है। बीते 6 माह में 1 करोड़ 20 लाख लोग प्रत्यक्ष रूप से गरीबी की चपेट में आए हैं। वही 3 करोड़ 50 लाख बी0पी0एल धारकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है । यह दिहाड़ी मजदूर दिन प्रतिदिन काम करके अपना जीवन यापन करते हैं। इनमें से अधिकतम के पास घर नहीं होता , झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहते हैं। एक ही झुग्गी में पूरा परिवार रहता है। ऐसे में ना ही फिजिकल दूरी और ना ही सामाजिक दूरी की आशा की जा सकती है। आज यह अपनी दैनिक आवश्यकताएं पूरे करने में असमर्थ हैं। मास्क , सैनिटाइजर की उम्मीद ही नहीं की जा सकती। ऐसा नहीं है कि लापरवाही के कारण कर रहे हैं। बहुत से मजदूरों और लोगों में देखा गया है कि वह अपना गमछा ( साफी) , महिलाएं साड़ी ( फाड़ कर बनाया गया छोटा कपड़ा) और बच्चों को घर में पड़े कपड़े का मास्क इत्यादि बनाकर उपयोग कर रहे हैं। इनके पास मास्क और सैनिटाइजर का पैसा आएगा कहां से? संपूर्ण रोजगार के अवसर तो बंद पड़े हैं। काम की तलाश में इधर-उधर भटक भी रहे हैं। जिससे कि अपनी रोजी-रोटी चला सके परंतु काम कैसे मिले ? शहर में स्वयं का घर ना होने के कारण झुग्गी और झोपड़ी बनाकर रहते हैं । कई शहरों से इनकी झुग्गी झोपडिय़ां खाली करा दी गई । इनका गांव की ओर पलायन हुआ , कुछ गांव ने इनका प्रवेश ही वर्जित कर दिया जिसने प्रवेश दिया भी वहां किसी भी प्रकार की सहायता नहीं दी गई। एक और महामारी का प्रकोप, दूसरी ओर सामाजिक विभेद और रोटी की समस्या, ऐसी स्थिति में क्या करें? इस स्थिति में परिवार का सदस्य बीमार हो जाए तो वह क्या करेगा इसका उल्लेख ही नहीं किया जा सकता ?
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